|| कृष्ण गीत ||





मुरली बजा दे ओ नंदलाला ,
विनती है करती तोसे ये बृज की बाला  ||
कान सुनने को है मोरे तरसे ,
चुन्नी खिसके जाए सर से  ;
न आती है मोहे अब निंदिया ,
जाने कहां गिर गई रे मोरी बंदिया ;
 सुधबुध है खोई मोरी , 
याद सताए जाए सिर्फ मोहे तोरी ;
एक बार मोरी सुन ले ओ गोपाला ! ,
मुरली बजा दे ओ नंदलाला ,
विनती है करती तोसे ये बृज की बाला  ||

 घर को छोड़ मैं आई तोरे पास ,
है तोसे मोको मुरली सुनने को आस ;
काहे खाता है तू इतना भाव ,
न दे कान्हा मोहे अब और घाव ;
मुरली बजा दे ओ नंदलाला ,
विनती है करती तोसे  ये बृज की बाला  ||


तोरी ये मुरली तो लागे मोहे चोर ,
खींच लियो इस ने मोरी दिल की डोर ;
 न लागती मोहे अब प्यास , 
बस तोरी ये मुरली ही लागे मोहे खास ;
 या तो जेल में तू दे इसे डाल ,
या फिर सुना दे मोको इसकी धुन ओ गोपाल ! ;
मुरली बजा दे ओ नंदलाला ,
विनती है करती तोसे  ये बृज की बाला  ||


    - राधिका कृष्णसखी


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